10+ फतेहपुर सीकरी में घूमने की जगह | Fatehpur Sikri Best Tourist Places in Hindi

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फतेहपुर सीकरी में घूमने की जगह : फतेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश का एक खूबसूरत शहर है, जो आगरा से मात्र 37 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर ने करवाया था। 1571 से 1585 तक ये मुगल साम्राज्य की राजधानी भी रहा। यह शहर अपने लाल बलुआ पत्थर की इमारतों के लिए प्रसिद्ध है, जिनमें जामा मस्जिद, बुलंद दरवाजा और पंच महल प्रमुख हैं। फतेहपुर सीकरी को 1986 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।

फतेहपुर सीकरी में घूमने की जगह |Fatehpur Sikri Me Ghumne ki Jagah
फतेहपुर सीकरी में घूमने की जगह

हम आपको इस ब्लॉग में बताएंगे फतेहपुर सीकरी में घूमने की जगह, सुंदर-सुंदर ऐतिहासिक जगह के बारे में और फतेहपुर सीकरी से जुड़ा अकबर का कुछ इतिहास आईए जानते हैं कौन सी है? जगह और क्या है फतेहपुर सीकरी का इतिहास ?

आपकी जानकारी के लिए बता दे कि यह शहर आगरा से बहुत नजदीक है अगर आप आगरा जाते हैं तो फतेहपुर सीकरी जरूर जाएं इस शहर में यातायात के हर साधन मौजूद हैं। रेल मार्ग सड़क मार्ग वायु मार्ग यह मुख्य मार्ग हैं तो आप किसी भी मार्ग द्वारा जा सकते हैं|( Fatehpur Me Ghumne Ki Jagah)

फतेहपुर सीकरी में घूमने की जगह और उनकी खासियत –

फतेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक शहर है, जो आगरा से 37 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर ने करवाया था और यह 1571 से 1585 तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रहा। यह शहर अपने लाल बलुआ पत्थर की इमारतों के लिए प्रसिद्ध है, जिनमें जामा मस्जिद, बुलंद दरवाजा और पंच महल शामिल हैं। फतेहपुर सीकरी को 1986 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।

फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा: भव्यता और शक्ति का प्रतीक

फतेहपुर सीकरी घूमने आए हैं और किसी अजूबे को देखना चाहते हैं, तो बुलंद दरवाजा से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती! यह भव्य प्रवेशद्वार न सिर्फ अपनी ऊंचाई से हैरान करता है, बल्कि इतिहास, धर्म और स्थापत्य कला का संगम भी है। तो चलिए, आज इस विशाल दरवाजे की कहानी जानते हैं:

बुलंद दरवाजा
बुलंद दरवाजा

नाम का मतलब: “बुलंद” का अर्थ होता है “ऊंचा” या “भव्य”। ये नाम वाकई में सार्थक है, क्योंकि दुनिया भर में यह सबसे ऊंचा प्रवेशद्वार है, जिसकी ऊंचाई 53.63 मीटर है।

इतिहास: 1575-76 में बनकर तैयार हुआ बुलंद दरवाजा लाल बलुआ पत्थर से बना है। इसे मुगल बादशाह अकबर ने गुजरात पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में बनवाया था। तब इसका निर्माण करीब एक साल में पूरा हुआ था।

स्थापत्य कला: बुलंद दरवाजा एक विशाल मेहराब के रूप में बना है, जिसके ऊपर तीन गुंबद हैं। इसके चारों ओर मीनारें बनी हैं, जो इसकी भव्यता को और बढ़ाती हैं। इसकी खासियत है:

  • हिंदू और मुस्लिम स्थापत्य शैली का मिश्रण: दरवाजे पर ज्योमैट्रिक आकृतियों और फूल-पत्तियों की नक्काशी हिंदू शैली की झलक दिखाती है, जबकि मेहराब और मेहराबदार खिड़कियां मुस्लिम शैली को दर्शाती हैं।
  • कुरान की आयतें: दरवाजे पर और इसके आसपास कुरान की कई आयतें लिखी हुई हैं।
  • 42 सीढ़ियां: दरवाजे तक पहुंचने के लिए 42 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जो शायद जीवन के 42 स्तरों का प्रतीक हो सकती हैं।
  • पैनोरमिक दृश्य: ऊपर से पूरे फतेहपुर सीकरी का खूबसूरत नज़ारा दिखाई देता है।

पंचमहल-

नाम का मतलब: “पंच महल” का शाब्दिक अर्थ होता है “पांच मंजिलों का महल”। यह नाम ही इसकी खासियत बताता है।

पंच महल
पंच महल

इतिहास: 1572-75 के बीच बनकर तैयार हुआ पंच महल लाल बलुआ पत्थर से बना है। माना जाता है कि इसे मुगल बादशाह अकबर ने बनवाया था, संभवतः रानियों और शाही परिवार के मनोरंजन के लिए। इसकी अनोखी डिजाइन में जैन मंदिरों की झलक मिलती है, लेकिन इसे हिंदू और फारसी स्थापत्य शैली से सजाया गया है।

स्थापत्य कला: पंच महल अपनी त्रिकोणीय आकृति और 176 स्तंभों के जाल के लिए प्रसिद्ध है। इसकी खासियत है:

  • पांच मंजिलें: हर मंजिल का आकार पिछली मंजिल से छोटा है, जिससे पिरामिड जैसा आकार बनता है।
  • खुला हुआ डिजाइन: सभी मंजिलें खुली हैं, जिससे हवा और रोशनी का आवागमन आसानी से होता है।
  • जटिल नक्काशी: स्तंभों और दीवारों पर सुंदर ज्यामितीय और फूल-पत्तियों की नक्काशी देखने लायक है।
  • पानी का फव्वारा: ऊपर की मंजिल में पहले एक पानी का फव्वारा हुआ करता था, जो वातावरण को ठंडा रखता था।

विशेषताएं:

  • मनोरम दृश्य: ऊपर की मंजिल से फतेहपुर सीकरी का शानदार नज़ारा दिखाई देता है।
  • शांत वातावरण: भव्य इमारतों से दूर होने के कारण यहां शांत और सुकून मिलता है।
  • प्रकाश का खेल: सूर्योदय और सूर्यास्त के समय यहां प्रकाश का अद्भुत खेल देखने को मिलता है।

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दीवाने खास –

दीवाने खास
दीवाने खास

दीवाने खास पच्चीसी आंगन के उत्तरी छोर पर स्थित है यह सम्राट अकबर का शाही कक्ष था इसकी वास्तुकला में फारसी शैली का उपयोग किया गया है आंतरिक भाग में नक्काशी दार केंद्रीय स्तंभ है यहां पर अच्छी मूर्ति कला और कीमती पत्थरों के प्रयोग द्वारा इस सजाया गया है।

फतेहपुर सीकरी का दीवान-ए-आम: इतिहास और भव्यता का संगम

दीवाने आम
दीवाने आम

फतेहपुर सीकरी घूमने आए हैं, तो वहां दीवान-ए-आम को देखना तो लाज़मी है! यह भव्य हॉल अपने आप में इतिहास समेटे हुए है और मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल की झलक दिखाता है। तो चलिए, थोड़ा इतिहास और स्थापत्य कला की बात करते हैं:

नाम का मतलब: दीवान-ए-आम का मतलब होता है “जनता के दरबार का हॉल”। यह इस बात का प्रतीक है कि यहां अकबर आम लोगों की फरियाद सुनते थे और न्याय करते थे।

इतिहास: 1571-75 के बीच बनकर तैयार हुआ दीवान-ए-आम लाल बलुआ पत्थर से बना है। माना जाता है कि इसका डिजाइन गुजराती और जैन स्थापत्य शैली से प्रेरित है। इसे बनाने में करीब 5 साल लगे थे।

स्थापत्य कला: विशाल चौकोर आकार वाला यह हॉल 54 खंभों पर टिका हुआ है। हर खंभे पर सुंदर नक्काशी और ज्यामितीय आकृतियां बनी हैं। छत पर भी कमल के फूलों की नक्काशी देखने लायक है। हॉल के तीन तरफ मेहराबदार दीवारें हैं, जो इसे हवादार और खुला बनाती हैं।

विशेषताएं:

  • हॉल के पश्चिम छोर पर एक ऊंचा मंच बना है, जहां अकबर सिंहासन पर बैठते थे। कहा जाता है कि इस मंच को इस तरह से बनाया गया है कि अकबर की आवाज पूरे हॉल में गूंजती थी।
  • हॉल के चारों ओर बरामदे बने हैं, जहां आम लोग खड़े होकर बादशाह से फरियाद कर सकते थे।
  • कुछ इतिहासकारों का मानना है कि दीवान-ए-आम का डिजाइन धर्मनिरपेक्षता को दर्शाता है, क्योंकि इसमें हिंदू और मुस्लिम स्थापत्य शैली का मिश्रण दिखता है।

आज का महत्व: आज दीवान-ए-आम एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल है। यहां घूमते हुए आप मुगल काल की कल्पना कर सकते हैं और उस समय के शासन और समाज के बारे में सोच सकते हैं।

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शेख सलीम चिश्ती की दरगाह –

दरगाह सूफी संत शेख सलीम चिश्ती को समर्पित है, जिन्हें उनकी पवित्रता और चमत्कारों के लिए जाना जाता था। मुगल बादशाह अकबर को संतान न होने का दुख था, जब उन्होंने सलीम चिश्ती से आशीर्वाद लिया, तो उनकी पत्नी जोधाबाई को पुत्र हुआ। अकबर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए इस भव्य दरगाह का निर्माण करवाया।

शेख सलीम चिश्ती की दरगाह
शेख सलीम चिश्ती की दरगाह

इतिहास:

1571-72 के दरमियान लाल बलुआ पत्थर से बनी ये दरगाह न केवल सुंदर है, बल्कि उस समय के हिंदू-मुस्लिम सांस्कृतिक मेल का भी प्रतीक है। निर्माण में हज़ारों मजदूरों ने काम किया और इसे बनाने में लगभग 6 साल का समय लगा।

वास्तुकला:

दरगाह परिसर दो हिस्सों में बंटा है:

  • बाहरी आंगन: विशाल आंगन के चारों ओर जालीदार खिड़कियों वाली खूबसूरत मेहराबें बनी हैं। यहां आप विभिन्न धर्मों के लोग प्रार्थना करते देखेंगे।
  • दरगाह: सलीम चिश्ती का मकबरा संगमरमर से बना है और सोने की जाली से ढका हुआ है। मकबरे के चारों ओर जटिल ज्यामितीय आकृतियों और फारसी शिलालेखों की नक्काशी की गई है।

विशेषताएं:

  • बुलंद दरवाजा: दरगाह के दक्षिण द्वार को “बुलंद दरवाजा” कहते हैं, जो दुनिया के सबसे ऊंचे प्रवेश द्वारों में से एक है। इसकी विशालता और महीन नक्काशी देखते ही बनती है।
  • दीपदान समारोह: हर साल रोज़े की 14वीं और 15वीं रात को दरगाह पर भव्य दीपदान समारोह होता है, जिसमें हजारों मोमबत्तियां जलाई जाती हैं, जो एक अद्भुत नजारा होता है।
  • धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक: दरगाह पर सभी धर्मों के लोग आते हैं और शांति से इबादत करते हैं। यह धार्मिक सहिष्णुता का बेहतरीन उदाहरण है।

जोधा बाई का महल-

जोधा बाई का महल
जोधा बाई का महल

महल का नाम: फतेहपुर सीकरी में घूमने की बेहतरीन जगह जोधा बाई महल, इसका नाम मुगल बादशाह अकबर की पत्नी और पसंदीदा रानी, जोधाबाई के नाम पर रखा गया है। यह माना जाता है कि इस महल को बनवाते समय रानी की पसंद का खास ख्याल रखा गया था, यही वजह है कि इसमें हिंदू और मुगल स्थापत्य शैली का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है।

इतिहास: 1570 में बनकर तैयार हुआ जोधाबाई महल लाल बलुआ पत्थर से बना है। इसे बनवाने में करीब 5 साल लगे थे। कहा जाता है कि अकबर ने रानी के लिए ये महल इसलिए बनवाया था ताकि उन्हें अपने घर की याद न आए। इसे पूरे शाही ठाठ से सजाया गया था और इसमें राजपूत और मुगल शैली के बेहतरीन कलाकृतियां मौजूद थीं।

स्थापत्य कला: दो मंजिला यह महल काफी बड़ा है और कई आंगनों, कमरों और बरामदों से मिलकर बना है। इसकी खासियत है:

  • हिंदू स्थापत्य का प्रभाव: दीवारों पर लटकनें, कमरों की डिजाइन और नक्काशियां स्पष्ट रूप से हिंदू स्थापत्य शैली को दर्शाती हैं।
  • मुगल शैली का समावेश: मेहराब, जालीदार खिड़कियां और फूल-पत्तियों की नक्काशी मुगल शैली की झलक दिखाती हैं।
  • जल संरक्षण की तकनीक: महल में पानी के संग्रहण और उपयोग के लिए बेहतरीन तकनीकों का इस्तेमाल किया गया था।

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ट्रेजरी –

ट्रेजरी
ट्रेजरी

दिवाने खास के पास ट्रेजरी है इसे गुप्त पत्थर की तिजोरी का घर भी कहा जाता है जो कुछ कोनें में सुरक्षित है सामने ज्योतिषी की छतरी है जिसकी छत जैन शैली में तैयार की गई है यह देखने के लिए अच्छा स्थल है ऐतिहासिक बैंक है।

जमा मस्जिद-

जमा मस्जिद
जमा मस्जिद

यह फतेहपुर सीकरी की सबसे पहली निर्माण की गई इमारतों में से एक है इसका निर्माण 1571 में हुआ था इसमें भारतीय और फारसी वास्तु कला देखने को मिलेगी इस मस्जिद में प्रवेश बुलंद दरवाजे के माध्यम से होता है इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इस पर छतरियों की पंक्तियां हैं।

अनूप तालाब-

अनूप तालाब
अनूप तालाब

इसे अकबर द्वारा बनाया गया था कहा जाता है कि यहां गायक और संगीतकार पानी के ऊपर एक मंच पर प्रदर्शन करते थे तब अकबर उन्हें अपने निजी क्षेत्र के मंडप से देखते थे जिसे दौलत खान कहा जाता है।

फतेहपुर सीकरी का कारवां सराय: सफरगानों के विश्राम स्थल की कहानी

कारवां सराय
कारवां सराय

फतेहपुर सीकरी घूमने आए हैं और इतिहास के हर पहलू को छूना चाहते हैं, तो कारवां सराय को ज़रूर देखना चाहिए। यह सदियों पुराना सराय सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि उस ज़माने के व्यापार और यात्राओं की कहानी कहता है। तो चलिए, आज इस ऐतिहासिक स्थल के बारे में जानते हैं:

नाम का मतलब: “कारवां” का मतलब होता है यात्रियों का समूह और “सराय” का मतलब होता है विश्राम गृह। यानी, कारवां सराय सफर करने वालों के लिए रुकने और आराम करने की जगह हुआ करती थी।

इतिहास: 1572 में बनकर तैयार हुआ कारवां सराय लाल बलुआ पत्थर से बना है। इसे मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में बनवाया गया था। उस समय व्यापार के लिए दूर-दूर से लोग आते-जाते थे, इसलिए सरायों की बहुत ज़रूरत थी।

स्थापत्य कला: विशाल चौकोर आकार वाला यह सराय दो मंजिला है और इसमें कमरों, आंगनों, दुकानों और एक मस्जिद समेत कई हिस्से हैं। इसकी खासियत है:

  • केंद्रीय आंगन: आंगन के चारों ओर कमरे बने हुए हैं, जहां व्यापारी अपना सामान रखते थे और आराम करते थे।
  • मेहराबदार दीवारें: सराय की दीवारों पर ऊंचे मेहराब बने हैं, जो इसे एक शानदार रूप देते हैं।
  • जालीदार खिड़कियां: हवा और रोशनी के लिए खिड़कियों पर जाली लगी हुई है, जो उस ज़माने की वास्तुकला की खासियत है।
  • मस्जिद: सराय के परिसर में ही एक छोटी मस्जिद भी बनाई गई थी, ताकि मुस्लिम यात्री अपनी इबादत कर सकें।

विशेषताएं:

  • दुकानें: सराय के निचले हिस्से में कई दुकानें थीं, जहां यात्री अपना सामान बेच सकते थे और ज़रूरी चीज़ें खरीद सकते थे।
  • पशुओं के लिए जगह: सराय में जानवरों को बांधने और उनकी देखभाल करने के लिए भी जगह थी।
  • सुरक्षा: सराय की दीवारें ऊंची और मज़बूत थीं, ताकि यात्री और उनका सामान सुरक्षित रहें।

आज का महत्व: आज कारवां सराय फतेहपुर सीकरी के इतिहास और संस्कृति को दर्शाता है। यहां घूमते हुए आप उस ज़माने के व्यापार और यात्राओं की कल्पना कर सकते हैं और साथ ही मुगलकालीन स्थापत्य कला को भी करीब से देख सकते हैं।

पच्चीसी प्रांगण –

पच्चीसी प्रांगण
पच्चीसी प्रांगण

नाम का मतलब: “पच्चीसी” एक पारंपरिक भारतीय बोर्ड गेम है और “प्रागंण” का मतलब होता है खुला आंगन। माना जाता है कि इस बड़े आंगन को इसी खेल की तर्ज पर डिजाइन किया गया था, इसलिए इसे पच्चीसी प्रागंण कहा जाता है।

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इतिहास: 16वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में इसे बनवाया गया था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसका इस्तेमाल वास्तव में पच्चीसी खेलने के लिए नहीं होता था, बल्कि शाही दावतों, समारोहों और सैन्य अभ्यासों के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

स्थापत्य कला: लाल बलुआ पत्थर से बना यह विशाल आयताकार प्रागंण करीब 225 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला है। इसकी खासियत है:

  • बैठने की व्यवस्था: चारों तरफ ऊंचे प्लेटफॉर्म बने हैं, जहां दर्शक बैठकर खेल या कार्यक्रम देख सकते थे।
  • 25 चौकोर खाने: पूरे प्रागंण को 25 समान चौकोर खानों में बांटा गया है, जो पच्चीसी के खेल की तरह ही हैं। इन खानों पर अलग-अलग रंगों की टाइलें और ज्यामितीय आकृतियां बनी हैं।
  • केंद्रीय जलाशय: प्रागंण के बीच में एक जलाशय बना है, जो गर्मी के दिनों में ठंडक पहुंचाता था और साथ ही सौंदर्य भी बढ़ाता था।

विशेषताएं:

  • रहस्यमय उपयोग: पच्चीसी खेलने के अलावा, यहां होने वाली गतिविधियों के बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं है। कुछ का मानना है कि यहां ज्योतिषीय गणनाएं की जाती थीं, तो कुछ इसे युद्ध की रणनीति बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया मानते हैं।
  • शानदार वास्तुकला: प्रागंण की दीवारों पर सुंदर नक्काशियां और मेहराब बने हैं, जो मुगलकालीन स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण हैं।
  • शानदार दृश्य: प्रागंण से फतेहपुर सीकरी के अन्य स्मारकों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।

ख्वाब महल: सपनों और संगीत का आशियाना-

फतेहपुर सीकरी की धूप में घूमते हुए अगर किसी शानदार इमारत की ओर खींचे चले जाएं, तो वो शायद “ख्वाब महल” ही होगा। ये खूबसूरत महल अपने नाम की तरह ही सपनों और संगीत से जुड़ी कहानियां समेटे हुए है। तो चलिए, आज इस जादुई जगह के बारे में जानते हैं:

ख्वाब महल
ख्वाब महल

नाम का मतलब: “ख्वाब” का मतलब सपना होता है और “महल” तो आप जानते ही हैं। यानी, ख्वाब महल को “सपनों का महल” भी कहा जाता है। माना जाता है कि यहां संगीत और कला के कार्यक्रम होते थे, जो उस समय के लोगों के लिए सपनों जैसा अनुभव होता होगा।

इतिहास: 1572-75 के बीच बनकर तैयार हुआ ख्वाब महल लाल बलुआ पत्थर से बना है। इसे मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में बनवाया गया था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ये महल विशेष रूप से रानी जोधाबाई के लिए बनवाया गया था, जबकि कुछ मानते हैं कि यहां अकबर अपने दरबारियों और कलाकारों के साथ संगीत और वाद-विवाद का आनंद लेते थे।

स्थापत्य कला: दो मंजिला यह महल काफी सुंदर और जटिल डिजाइन वाला है। इसकी खासियत है:

  • केंद्रीय आयताकार हॉल: हॉल बड़ा और हवादार है, जिसकी छत ऊंचे स्तंभों पर टिकी हुई है।
  • जालीदार खिड़कियां: इन खिड़कियों से हवा और रोशनी आती है और साथ ही इमारत को एक अनोखा रूप देती हैं।
  • जल चैनल और फव्वारे: महल के आंगन और बरामदों में जल चैनल और फव्वारे बने हुए थे, जो वातावरण को ठंडा और सुखद बनाते थे।
  • नक्काशी और कलाकृतियां: दीवारों और छत पर सुंदर नक्काशी और फूल-पत्तियों की कलाकृतियां बनी हुई हैं।

विशेषताएं:

  • म्यूजिक रूम: इतिहासकारों का मानना है कि महल के एक हिस्से को खास तौर पर संगीत के लिए बनाया गया था। शायद यही वो जगह है जहां प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन और बैजू बावरा के बीच संगीत का मुकाबला हुआ था।
  • पानी का टैंक: महल के नीचे एक बड़ा पानी का टैंक बना हुआ है, जो गर्मी के दिनों में ठंडक पहुंचाता था।
  • पांच महल का नज़ारा: ख्वाब महल से पांच महल का खूबसूरत नज़ारा भी देखा जा सकता है।

बीरबल भवन-

नाम का मतलब: बीरबल भवन का नाम मुगल बादशाह अकबर के प्रिय मंत्री और मित्र राजा बीरबल के नाम पर रखा गया है। माना जाता है कि इसे उन्हीं के लिए बनवाया गया था।

बीरबल भवन
बीरबल भवन

इतिहास: 1571-75 के बीच बनकर तैयार हुआ बीरबल भवन लाल बलुआ पत्थर से बना है। ये उस समय बनाई गई अकबर की अन्य भव्य इमारतों से अलग है, क्योंकि इसमें हिंदू स्थापत्य कला का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

स्थापत्य कला: यह भवन दो मंजिला है और इसमें कई कमरे, बरामदे और आंगन हैं। इसकी खासियत है:

  • हिंदू स्थापत्य का प्रभाव: छतों पर कमल के फूलों की नक्काशी, चैत्य आकार के मेहराब और चौकोर खंभे स्पष्ट रूप से हिंदू स्थापत्य का प्रभाव दिखाते हैं।
  • ज्योतिषीय महत्व: माना जाता है कि भवन को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि सूर्य की रोशनी हर महीने अलग-अलग कमरों में पड़ती थी, जो ज्योतिष से जुड़ा हो सकता है।
  • जल संरक्षण की तकनीक: भवन में पानी के संग्रहण और उपयोग के लिए बेहतरीन तकनीकों का इस्तेमाल किया गया था।

विशेषताएं:

  • खजाना: माना जाता है कि भवन में एक गुप्त खजाना भी था, जिसके बारे में आज भी कई कहानियां प्रचलित हैं।
  • छतरी: भवन के ऊपर एक सुंदर छतरी बनी हुई है, जो इसे और भी आकर्षक बनाती है।
  • पौराणिक कथाओं की झलक: भवन की दीवारों पर पौराणिक कथाओं से जुड़ी नक्काशियां बनी हुई हैं।

हिरन मीनार-

फतेहपुर सीकरी में घूमने की जगह और इतिहास के अनोखे पहलुओं को तलाशना चाहते हैं, तो हिरन मीनार को ज़रूर देखना चाहिए! ये आठ मंजिला ऊंची इमारत अपने वास्तुशिल्प और कहानियों के लिए मशहूर है। तो चलिए, आज हिरन मीनार के बारे में जानते हैं:

हिरन मीनार
हिरन मीनार

नाम का मतलब: “हिरन” का मतलब हिरण और “मीनार” का मतलब स्तंभ होता है। माना जाता है कि इस मीनार को अकबर ने अपने पसंदीदा हाथी, ‘हिरन’ की याद में बनवाया था। हालांकि, कई अन्य कहानियां और रहस्य भी इसके इर्द-गिर्द मौजूद हैं।

इतिहास: 1572 में बनकर तैयार हुई हिरन मीनार लाल बलुआ पत्थर से बनी है। इसके निर्माण के पीछे का असली कारण तो इतिहास के पन्नों में ही छिपा है, लेकिन कई कहानियां मशहूर हैं। कुछ का मानना है कि अकबर किसी प्रतियोगिता के हारने के बाद निराश होकर इसे बनवाया, तो कुछ कहते हैं कि ये सिर्फ शान दिखाने के लिए बनाया गया था।

स्थापत्य कला: आठ मंजिला ऊंची और करीब 22 मीटर लंबी हिरन मीनार अपने आप में अनोखी है। इसकी खासियत है:

  • हिरन के सींगों जैसी नक्काशी: मीनार के बाहर नीचे से ऊपर तक पत्थर की नक्काशियां की गई हैं, जो हिरन के सींगों से मिलती-जुलती हैं। यही इसकी एक प्रमुख विशेषता है।
  • जटिल सीढ़ियां: मीनार के अंदर जाने के लिए पतली और जटिल सीढ़ियां बनी हैं, जिन पर चढ़ना थोड़ा मुश्किल है।
  • ऊपर से नज़ारा: मीनार के सबसे ऊपर से फतेहपुर सीकरी का शानदार नज़ारा दिखाई देता है।

विशेषताएं:

  • सटीक इंजीनियरिंग: बिना आधुनिक तकनीक के इतनी ऊंची और मजबूत इमारत बनाना अपने आप में एक उपलब्धि है।
  • रहस्य और किंवदंतियां: हिरन मीनार से जुड़ी कई रहस्य और किंवदंतियां इसे और भी दिलचस्प बनाती हैं। कुछ लोग मानते हैं कि इसके अंदर छिपे दरवाजे और गुप्त कमरे हैं, तो कुछ इसे किसी खगोलीय अवलोकन स्थल के रूप में देखते हैं।
  • पर्यटकों का आकर्षण: आज हिरन मीनार फतेहपुर सीकरी के लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से एक है। यहां घूमते हुए आप मुगलकालीन स्थापत्य कला को करीब से देख सकते हैं और इतिहास के रहस्यों को महसूस कर सकते हैं।

आंख में चोली –

आंख में चोली
आंख में चोली

आंख में चोली फतेहपुर सीकरी की एक प्रमुख इमारत है कहते हैं कि यह अकबर की सबसे पसंदीदा जगह थी यहां पर वह अपनी बेगमों के संग खेल खेला करते थे।

अन्य स्थान – फतेहपुर सीकरी में स्थित अन्य प्रमुख स्मारक में रंग महल, कबूतर खाना हाथी पोल, संगीत बुर्ज, ख्वाबगाह , ज्योतिषी का कमरा दफ्तर खान, इबादत खान, आपदार खान, और हरम सार प्रमुख है।

फतेहपुर सिकरी अकबर का इतिहास-

फतेहपुर सिकरी 14 साल तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रहने वाला शहर है बल्कि वह जगह बादशाह अकबर की जीत की एक निशानी भी है यह वही जगह है जहां पर उन्हें सूफी संत चिश्ती से दुआ मांगने के बाद उनकी हिंदू रानी जोधाबाई से एक संतान हुई थी जिसका नाम था जहांगीर तो आईए जानते हैं इस शहर फतेहपुर सीकरी का रोचक इतिहास जिसको बादशाह अकबर के सपनों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है यह बादशाह अकबर की मनपसंद नगरी हुआ करती थी यहीं पर उनकी इकलौती संतान सलीम का जन्म हुआ जहां पर वह 16 साल तक रहे फिर पानी की दिक्कत से उन्हें यह नगर छोड़ना पड़ा यहां का दरवाजा बुलंद दरवाजा के नाम से प्रसिद्ध है जिसे फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा कहा जाता है।

फतेहपुर कैसे पहुंचे –

हवाई मार्ग-

यहां आगरा में खेरिया हवाई अड्डा फतेहपुर सीकरी तक पहुंचाने के लिए निकटतम हवाई अड्डा है यह फतेहपुर सीकरी से लगभग 40 किलोमीटर दूर है और दुनिया भर के अधिकांश शहरों से हवाई मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है ज्यादातर प्रमुख एयरलाइंस जैसे एयर इंडिया जेट एयरवेज स्पाइसजेट इंडियन एयरलाइंस गो एयर एयर इंडिया एक्सप्रेस और एयर एशिया की आगरा के लिए नियमित उड़ते हैं हवाई अड्डे के बाहर से टैक्सी लेकर आप मामूली शुल्क पर फतेहपुर सीकरी पहुंच सकते हैं

सड़क मार्ग द्वारा

फतेहपुर सीकरी आगरा से 37 किलोमीटर और दिल्ली से 210 किलोमीटर दूर है यहां के लिए नोएडा और अन्य राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम द्वारा संचालित नियमित बसें चलती हैं इसके अलावा आप डीलक्स और वोल्वो बसों में भी फतेहपुर सीकरी पहुंच सकते हैं यह परिवहन का सबसे किफायती तरीका है और एक अच्छे सड़क नेटवर्क के कारण यहां की यात्रा काफी आरामदायक भी है अगर आप खुद ड्राइव करके फतेहपुर सीकरी जाना चाहते हैं तो आप दिल्ली से नए यमुना एक्सप्रेस के माध्यम से जा सकते हैं।

रेल मार्ग द्वारा

आगरा कैंट फतेहपुर सीकरी का निकटतम रेलवे स्टेशन है जो आगरा में स्थित है यह शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर है फतेहपुर सीकरी स्टेशन आगरा कैंट से पहले आता है और ट्रेन कई भारतीय शहरों से ट्रेन गुजरती है हल्दीघाटी दर्रा अवध एक्सप्रेस पंजाब मेल कर्नाटक एक्सप्रेस और झेलम एक्सप्रेस जैसे कई सुपरफास्ट और रूटिंग ट्रेन स्टेशन से प्रतिदिन चलती है आप स्टेशन के बाहर से बस और निजी टैक्सी लेकर शहर पहुंच सकते हैं

फतेहपुर सीकरी में कहां रुकें।

वैसे तो हम सभी जानते हैं कि फतेहपुर सिकरी एक ऐतिहासिक कर्म से बहुत प्रसिद्ध है यहां वर्ष भर पर्यटक आते हैं इसीलिए यहां पर्यटकों के रुकने के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध है अगर आप फतेहपुर सीकरी घूमने का प्लान कर रहे हैं तो घर बैठे ही अपने ठहरने के लिए होटल की फ्री बुकिंग कर सकते हैं यहां आप होटल वृंदावन, गोवर्धन टूरिस्ट कंपलेक्स, माया श्याम मंगलम पैलेस, साईं ध्यान ब्लू हिवेन ग्रस रेजिडेंसी, जैसे होटल में रुक सकते हैं आपकी जानकारी के लिए बता दें कि प्रत्येक होटल में ठहरने का शुल्क अलग-अलग है यहां लग्जरी होटल भी है जहां आप अपनी सुविधा और बजट के अनुसार ठहर सकते हैं

इस ब्लॉग में हमने आपको फतेहपुर सीकरी में अकबर के किले में घूमने की सभी जगह के बारे में बताया है और फतेहपुर सीकरी का संक्षिप्त इतिहास भी बताया है मैं उम्मीद करती हूं कि यह ब्लॉग आपको जरूर पसंद आया होगा।

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